उत्तर प्रदेश के नोएडा में साल 2015 में हुए चर्चित मोहम्मद अखलाक मॉब लिंचिंग केस में एक नया और बड़ा कानूनी मोड़ आ गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले के सभी आरोपियों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की है। इस संवेदनशील मुद्दे पर अब 23 दिसंबर को गौतम बुद्ध नगर की सूरजपुर फास्ट-ट्रैक कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलों को सुनेगी।
पूरा मामला: क्या हुआ था बिसाहड़ा में?
28 सितंबर 2015 की रात ग्रेटर नोएडा के दादरी स्थित बिसाहड़ा गाँव में एक अफवाह ने हिंसक रूप ले लिया था। स्थानीय मस्जिद से यह ऐलान किया गया कि मोहम्मद अखलाक के घर में गोमांस (बीफ) रखा है। इसके बाद एक उग्र भीड़ ने अखलाक के घर पर धावा बोल दिया। भीड़ ने अखलाक और उनके बेटे दानिश को घर से बाहर खींच लिया और लाठी-डंडों व ईंटों से बेरहमी से पीटा। इस हमले में अखलाक की मौत हो गई, जबकि दानिश गंभीर रूप से घायल हो गया था।
इस घटना ने उस समय पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था और 'असहिष्णुता' (Intolerance) के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ गई थी। मामले में कुल 18 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से कुछ नाबालिग भी थे।
सरकार का पक्ष: 'सामाजिक सद्भाव' का तर्क
प्रॉसिक्यूशन के जॉइंट डायरेक्टर के निर्देश पर असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट गवर्नमेंट एडवोकेट ने अदालत में केस वापसी की याचिका दायर की है। सरकार के इस कदम के पीछे मुख्य रूप से निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं:
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सांप्रदायिक सद्भाव: सरकार का मानना है कि 10 साल पुराने इस केस को वापस लेने से इलाके में सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने में मदद मिलेगी।
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हथियारों की कमी: याचिका में कहा गया है कि हमले के दौरान किसी घातक आधुनिक हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ था।
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पुरानी दुश्मनी का अभाव: यह तर्क दिया गया है कि आरोपियों और पीड़ित पक्ष के बीच पहले से कोई रंजिश नहीं थी।
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फोरेंसिक रिपोर्ट: याचिका में एक विवादित फोरेंसिक रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें दावा किया गया था कि बरामद मांस गाय या उसके बछड़े का था।
पीड़ित परिवार की कड़ी आपत्ति
अखलाक के परिजनों ने सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी है और निचली अदालत में भी कड़ा विरोध दर्ज कराया है। परिवार के वकील यूसुफ सैफी ने सरकार के तर्कों पर कई सवाल उठाए हैं:
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जघन्य अपराध: परिवार का सवाल है कि क्या लाठी-डंडों से पीट-पीटकर किसी की जान लेना छोटा अपराध है? क्या हत्या के मामले में 'हथियारों की कमी' का तर्क वैध हो सकता है?
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अधूरी गवाही: वकील ने बताया कि अभी मुख्य गवाहों—अखलाक के बेटे दानिश और पत्नी इकरमन—की गवाही होना बाकी है। केवल बेटी शैस्ता का बयान दर्ज हुआ है। ऐसे में ट्रायल को बीच में रोकना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
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न्याय की गुहार: परिवार का कहना है कि केस वापस लेने से सद्भाव नहीं, बल्कि अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे।
अब आगे क्या?
सूरजपुर फास्ट-ट्रैक कोर्ट के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज ने 23 दिसंबर की तारीख तय की है। इस दिन कोर्ट यह तय करेगा कि क्या सरकार को केस वापस लेने की अनुमति दी जानी चाहिए या ट्रायल जारी रहेगा। उत्तर प्रदेश सरकार के इस आदेश ने एक बार फिर लिंचिंग जैसे जघन्य अपराधों में न्याय और राजनीति के संतुलन पर सवाल खड़े कर दिए हैं।