भारत ने एक बार फिर दुनिया के सामने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह आतंकवाद को किसी भी हाल में सहन नहीं करेगा। ऑपरेशन सिंदूर न केवल एक सैन्य और कूटनीतिक सफलता है, बल्कि यह भारत के उस स्पष्ट दृष्टिकोण का प्रतीक है जिसमें आतंकवाद के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' नीति को अपनाया गया है। इस ऑपरेशन की सफलता के बाद भारत सरकार ने एक विशेष पहल के तहत दुनियाभर में संसदीय प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब किया जा सके और यह संदेश दिया जा सके कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा।
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की रणनीतिक सख्ती की मिसाल
ऑपरेशन सिंदूर हाल के वर्षों का सबसे प्रमुख और निर्णायक मिशन रहा, जिसमें भारत ने आतंकवाद के केंद्रों को निशाना बनाते हुए कई ठिकानों को ध्वस्त किया। यह अभियान पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत चलाया गया और इसका मकसद सिर्फ एक था—आतंकवाद का जड़ से सफाया। इस ऑपरेशन के बाद भारत सरकार ने एक अनूठी पहल की शुरुआत की—दुनियाभर में संसद सदस्यों के दल भेजकर यह दिखाना कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई सिर्फ सीमा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संघर्ष है।
गुयाना में शशि थरूर और तेजस्वी सूर्या की अगुवाई वाला डेलीगेशन
कांग्रेस सांसद शशि थरूर और भाजपा युवा नेता तेजस्वी सूर्या का प्रतिनिधिमंडल साउथ अमेरिका के गुयाना में है। उनके साथ अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत तरणजीत सिंह संधू भी शामिल हैं। इस डेलीगेशन ने गुयाना के उप-राष्ट्रपति भरत जगदेव से मुलाकात की और भारत का यह स्पष्ट संदेश पहुंचाया कि आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता जरूरी है।
शशि थरूर ने कहा, “भारत अब किसी भी हत्यारे को माफ नहीं करेगा, हम उन्हें न्याय के कटघरे में लाएंगे।” वहीं तेजस्वी सूर्या ने कहा, “हमारा मकसद है कि दुनिया को यह बताएं कि भारत आतंकवाद के खिलाफ न केवल कड़ी नीति अपनाता है, बल्कि उसे वैश्विक मंचों पर भी उठाता है।”
गुयाना ने भी भारत के रुख का समर्थन किया और भारत के साथ खड़ा होने की प्रतिबद्धता जताई।
फ्रांस में रविशंकर प्रसाद का प्रतिनिधिमंडल
रविशंकर प्रसाद, भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री, फ्रांस में भारतीय डेलीगेशन का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका मिशन 25 से 27 मई तक फ्रांस, ब्रिटेन, डेनमार्क और जर्मनी तक फैला हुआ है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत शांति में विश्वास रखता है, लेकिन जब बात आतंकवाद की आती है तो भारत किसी भी तरह की ढील नहीं देगा।
उनका बयान था, “भारत की सरकार का पहला कर्तव्य है अपने नागरिकों की रक्षा करना और हम इसके लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार हैं।”
बहरीन से कड़ा संदेश: बैजयंत पांडा, गुलाम नबी आजाद और ओवैसी की उपस्थिति
बहरीन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भाजपा नेता बैजयंत पांडा कर रहे हैं। उनके साथ गुलाम नबी आजाद और असदुद्दीन ओवैसी जैसे अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा वाले नेता भी शामिल हैं। यह भारत की एकता और आतंकवाद के खिलाफ साझा संकल्प को दर्शाता है।
ओवैसी ने पाकिस्तान को लेकर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए कहा, “पाकिस्तान को यह समझना होगा कि अगर वह बार-बार ऐसा दुस्साहस करेगा तो उसे उसकी उम्मीद से ज्यादा करारा जवाब मिलेगा।”
गुलाम नबी आजाद ने बहरीन को "मिनी इंडिया" कहा और कहा, “हम भले ही भारत में अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़ते हों, लेकिन जब बात देश की संप्रभुता और सुरक्षा की हो, तो हम सब एकजुट हैं। पाकिस्तान का आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है।”
वैश्विक समर्थन जुटाने की कवायद
भारत ने यह साफ कर दिया है कि यह केवल उसका अकेला संघर्ष नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए खतरा है। सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोपीय संघ, और खाड़ी देशों के साथ भी इसी उद्देश्य से संवाद की योजना बनाई जा रही है। प्रतिनिधिमंडलों को एक और कार्य सौंपा गया है—विश्व समुदाय को यह समझाना कि जब तक पाकिस्तान जैसे देश आतंकियों को पनाह देंगे, तब तक वैश्विक शांति संभव नहीं।
निष्कर्ष: आतंकवाद पर भारत की 'जीरो टॉलरेंस' नीति
भारत का संदेश अब स्पष्ट है—आतंकवाद और उसके संरक्षक देशों को अब बख्शा नहीं जाएगा। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और उसके बाद वैश्विक मंचों पर भारत की सक्रियता इस बात का प्रमाण है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं देगा, बल्कि प्रिवेंटिव स्ट्राइक और कूटनीतिक हमले भी करेगा।
भारत की यह नीति सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि समूची मानवता की रक्षा के लिए है। जब तक आतंकवाद पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता, तब तक भारत की यह वैश्विक मुहिम जारी रहेगी।