28 January 2025 का दैनिक पंचांग / Aaj Ka Panchang: 28 जनवरी 2025 को माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इस तिथि पर पूर्वाषाढा नक्षत्र और वज्र  योग का संयोग रहेगा। दिन के शुभ मुहूर्त की बात करें तो मंगलवार को अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:12-12:55 मिनट तक रहेगा। राहुकाल दोपहर 15:15-16:36 मिनट तक है। चंद्रमा मकर राशि में संचरण करेंगे।
🌕🌞  श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम् 🌞 🌕
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🚩🔱 धर्मो रक्षति रक्षितः🔱 🚩
     🌅पंचांग- 28.01.2025🌅
युगाब्द - 5125 
संवत्सर - कालयुक्त 
विक्रम संवत् -2081   
शाक:- 1946 
ऋतु-   शिशिर __ उत्तरायण 
मास -  माघ _ कृष्ण पक्ष
वार -   मंगलवार 
तिथि - चतुर्दशी    19:35:9 
नक्षत्र    पूर्वाषाढा    08:57:32
योग    वज्र    23:50:16
करण    विष्टि भद्र    08:09:14
करण    शकुनी    19:35:29
करण    चतुष्पद    30:53:43
चन्द्र राशि     -  धनु    till 14:50:59
चन्द्र राशि     - मकर    from 14:50
सूर्य राशि    -   मकर
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩   
  ✍️ रंटती काली पूजन
🍁 अग्रिम (आगामी पर्वोत्सव 🍁
🔅 मौनी अमावस व्रत 
     .   29 जनवरी 2025
          (बुधवार) 
🔅 गुप्त नवरात्र प्रारंभ 
     .   30 जनवरी 2025
          (गुरुवार) 
🔅 बसंत पंचमी 
     .   02 फरवरी 2025
          (रविवार) 
🔅 सूर्य रथ सप्तमी 
     .   04 फरवरी 2025
          (मंगलवार)
🔅 महानवमी, गुप्त नवरात्र पूर्ण 
     .   06 फरवरी 2025
          (गुरूवार) 
🔅 जया एकादशी व्रत 
     .   08 फरवरी 2025
          (शनिवार)
 🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️
💐मैं न होता, तो क्या होता💐
“अशोक वाटिका" में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा
तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये!
किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा 
"मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि
 यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता तो क्या होता ?
परन्तु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,
 कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!
आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!"
तो हनुमान जी बड़ी चिंता में पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है
और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है,
एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा!
जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े,
तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की
और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो
 हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि
बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये
तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी,
वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता?
पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो
 मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !
इसलिये सदैव याद रखें, कि
 संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है!
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं! 
इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...
मैं न होता, तो क्या होता ?
जय जय श्री सीताराम
जय जय श्री ठाकुर जी की
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
पुजारी -श्री राधा गोपाल मंदिर,  (जयपुर)