भारतीय शेयर बाजार के लिए साल 2025 एक विरोधाभासी साल साबित हुआ है। एक तरफ जहां मुख्य सूचकांक (Sensex और Nifty) नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की हिस्सेदारी में आई ऐतिहासिक गिरावट ने बाजार के जानकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। यह बदलाव केवल आंकड़ों का हेरफेर नहीं, बल्कि भारतीय बाजार के बुनियादी ढांचे में आ रहे एक बड़े 'पैराडाइम शिफ्ट' का संकेत है।
विदेशी निवेश का सिकुड़ता दायरा
डिपॉजिटरी संस्था NSDL के ताजा आंकड़े एक चौंकाने वाली हकीकत बयां करते हैं। भारतीय लिस्टेड कंपनियों में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी अब घटकर 15.5% रह गई है। यह साल 2011 के बाद का सबसे निचला स्तर है। अगर हम एसेट्स अंडर कस्टडी (AUC) की बात करें, तो यह 2024 के अंत में 832 अरब डॉलर से गिरकर 15 दिसंबर 2025 तक 815 अरब डॉलर पर आ गई है। लगभग 2.1% की यह गिरावट 2022 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है।
घरेलू निवेशकों का उदय: नया 'मार्केट स्टेबलाइजर'
विदेशी फंड्स द्वारा इस साल लगभग 17.97 अरब डॉलर की भारी बिकवाली के बावजूद भारतीय बाजार धराशायी नहीं हुआ। इसका श्रेय जाता है भारतीय 'रिटेल' और 'घरेलू संस्थागत निवेशकों' (DII) को।
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रिकॉर्ड निवेश: घरेलू निवेशकों ने इस साल 7.63 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की पूंजी बाजार में झोंकी।
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ऐतिहासिक बढ़त: मार्च 2025 में पहली बार घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी विदेशी निवेशकों से अधिक हो गई और सितंबर तिमाही तक यह 18.26% के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई।
यह साफ दिखाता है कि अब भारतीय बाजार की डोर विदेशी पूंजी के बजाय घरेलू बचत (Mutual Funds, SIP और बीमा) के हाथों में है।
क्यों पीछे हट रहे हैं विदेशी निवेशक?
इस गिरावट के पीछे कई महत्वपूर्ण वैश्विक और स्थानीय कारण रहे हैं:
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ऊंचा वैल्यूएशन: भारतीय कंपनियों के शेयरों की कीमतें उनके वास्तविक मुनाफे (Earnings) की तुलना में काफी ज्यादा आंकी गईं, जिससे विदेशी निवेशकों ने मुनाफावसूली करना बेहतर समझा।
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AI का आकर्षण: पिछले दो सालों में वैश्विक निवेशकों का ध्यान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से जुड़ी तकनीकी कंपनियों की ओर अधिक रहा, जिससे भारत जैसे 'कंज्यूमर' और 'इंडस्ट्रियल' प्रधान बाजारों से पैसा निकलकर ताइवान और अमेरिका जैसे टेक-हैवी बाजारों में गया।
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एशियाई बाजार का दबाव: यह केवल भारत की समस्या नहीं है। ताइवान से पिछले छह वर्षों में 103 अरब डॉलर की निकासी हुई है। हालांकि, इंडोनेशिया इस मामले में अपवाद रहा जहां 3.7 अरब डॉलर का शुद्ध निवेश आया।
2026 की उम्मीदें
भले ही 2025 में विदेशी हिस्सेदारी घटी है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि 'बुरा वक्त' बीत चुका है। अब MSCI इंडिया का प्रीमियम अपने ऐतिहासिक औसत से नीचे आ गया है, जो विदेशी निवेशकों के लिए इसे फिर से आकर्षक बना सकता है। जैसे-जैसे AI का शोर कम होगा, निवेशकों का ध्यान वापस फाइनेंशियल, कंज्यूमर और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की ओर लौटेगा।