अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के फैसले ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी। आम धारणा यही रही कि यह कार्रवाई रूस से सस्ता तेल खरीदने की वजह से की गई, लेकिन आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक बिल्कुल अलग दृष्टिकोण सामने रखा। उनका कहना है कि यह पूरा विवाद आर्थिक कारणों से नहीं, बल्कि राजनीतिक ‘क्रेडिट’ और कूटनीतिक नाराज़गी की वजह से पैदा हुआ।
राजन के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने भारत को केवल इसलिए निशाने पर लिया, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने का श्रेय किसे मिलेगा—इस बात पर दोनों देशों और अमेरिका की कथाओं में टकराव दिखाई दिया। यही असहमति बाद में व्यापारिक निर्णयों के रूप में सामने आई और भारत को भारी-भरकम 50% टैरिफ का सामना करना पड़ा, जबकि पाकिस्तान को केवल 19% टैरिफ झेलना पड़ा।
तेल खरीद सिर्फ बहाना?
रघुराम राजन ने स्पष्ट कहा कि रूस से तेल खरीदना इस विवाद का मुख्य मुद्दा कभी रहा ही नहीं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ट्रंप ने हाल ही में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान द्वारा रूस से तेल खरीद को बिल्कुल स्वीकार्य बताया। यानी तेल आयात पर प्रतिबंध या नाराज़गी केवल भारत तक सीमित क्यों रही, इसका जवाब राजन के कूटनीतिक विश्लेषण में मिलता है। उनके अनुसार, व्हाइट हाउस के अंदर की एक "मुख्य शख्सियत" भारत के बयान और उसके फ्रेमिंग को लेकर काफी नाराज़ थी—यही कारण आर्थिक कदमों के रूप में सामने आया।
सीजफायर का श्रेय और राजन की व्याख्या
राजन ने यूबीएस फ़ोरम में दिए अपने वक्तव्य में कहा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम को लेकर ट्रंप प्रशासन यह संदेश देना चाहता था कि विवाद को शांत कराने में अमेरिकी नेतृत्व की निर्णायक भूमिका रही।
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पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि तनाव कम करने का श्रेय ट्रंप को जाता है।
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भारत, दूसरी ओर, यह बताने में लगा रहा कि यह वार्ता सैन्य नेतृत्व और द्विपक्षीय संवाद के चलते सफल हुई, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से।
यही टकराव अमेरिका और भारत के बीच नाराज़गी का कारण बना। राजन का स्पष्ट कहना था कि दोनों देशों की बातों का सच शायद “बीच में” है, लेकिन इस श्रेय-विवाद का व्यावहारिक असर व्यापारिक टैरिफ के तौर पर दिखाई दिया।
पाकिस्तान को लाभ, भारत पर भारी आर्थिक दबाव
युद्धविराम के श्रेय में पाकिस्तान ने ट्रंप की तारीफ कर कूटनीतिक तालमेल बनाए रखा, जिसका परिणाम बेहतर व्यापारिक व्यवहार के रूप में सामने आया। पाकिस्तान को केवल 19% टैरिफ ही झेलना पड़ा।
वहीं, भारत ने सार्वजनिक मंच पर अपने ही प्रयासों और सैन्य प्रक्रिया को प्राथमिक माना, जिससे अमेरिका के नेतृत्व को मिले अंतरराष्ट्रीय सम्मान और कूटनीतिक प्रभाव पर सवाल उठा।
इसके परिणामस्वरूप:
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भारत पर 50% टैरिफ लगाया गया
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अमेरिकी आयात बाजार में भारत के उत्पाद महंगे हो गए
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व्यापार संतुलन और निर्यात क्षेत्र पर प्रतिकूल असर पड़ा
कूटनीति के बदलते समीकरण
इस विवाद ने यह भी साबित किया कि वैश्विक व्यापारिक कदम हमेशा आर्थिक आधार पर नहीं उठाए जाते। कई बार:
राजन के बयान से यह भी संकेत मिलता है कि कूटनीति में भाषा और कथानक की प्रस्तुति उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी वास्तविक घटनाएं। जो देश वैश्विक मंच पर अमेरिका की भूमिका को अधिक रेखांकित करता है, वह कई बार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ भी उठाता है।