संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन सोमवार को लोकसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर ऐतिहासिक चर्चा आयोजित की जा रही है। दोपहर 12 बजे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विशेष विमर्श की शुरुआत करेंगे। वंदे मातरम को राष्ट्रभावना, स्वतंत्रता संघर्ष और सांस्कृतिक एकता के प्रतीक के रूप में मानते हुए इसे संसद में नए स्वरूप में स्मरण किया जाएगा। सरकार की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई केंद्रीय मंत्री इस चर्चा में हिस्सा लेंगे। संसद के इतिहास में यह पहली बार है कि वंदे मातरम् पर एक विस्तृत और समर्पित चर्चा दोनों सदनों में बारी-बारी से आयोजित की जा रही है। यह कार्यक्रम वर्षभर चलने वाले उन आयोजनों का हिस्सा है, जिनका उद्देश्य राष्ट्रगीत की उत्पत्ति, उसकी साहित्यिक विरासत और स्वतंत्रता आंदोलन में उसकी भूमिका को नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करना है।
सपा सांसद अवधेश प्रसाद बोले—“हम स्वागत करते हैं”
फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद ने वंदे मातरम् पर होने वाली इस ऐतिहासिक चर्चा का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “हम इस चर्चा के पक्ष में हैं और इसमें पूरी गरिमा के साथ भाग लेंगे। वंदे मातरम् देश की शौर्य, संस्कृति और स्वतंत्रता की भावना से जुड़ा है, इसलिए संसद में इस पर विमर्श होना गर्व का क्षण है।” सपा की ओर से इस सकारात्मक रुख को विपक्ष द्वारा अपनाई गई सहमति की राजनीति के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि विपक्ष इस अवसर पर देश के मौजूदा मुद्दों—बेरोजगारी, महंगाई, किसान संकट—को भी केंद्र में लाने की कोशिश करेगा।
CPI नेता डी. राजा के बयान पर प्रतिक्रिया
वंदे मातरम पर भाकपा नेता डी. राजा के बयान को लेकर सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा कि यह उनकी “व्यक्तिगत सोच और वैचारिक दृष्टि” हो सकती है। उन्होंने साथ ही यह टिप्पणी भी की कि “भाजपा को केवल प्रतीक और परंपरा पर ही विमर्श नहीं करना चाहिए, बल्कि उन वास्तविक समस्याओं पर भी गंभीरता से आगे बढ़ना चाहिए जिनका सामना देश कर रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की स्थिति, सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों पर समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत को सम्मान देना जरूरी है, लेकिन इस बहस के जरिए सरकार को लोकहित में ठोस नीति निर्माण की दिशा भी स्पष्ट करनी चाहिए।
सदन में दो दिन तक चलेगा विशेष विमर्श
सूत्रों के अनुसार, 8 दिसंबर को लोकसभा और 9 दिसंबर को राज्यसभा में वंदे मातरम् पर विस्तृत चर्चा होगी। 2 दिसंबर को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में सभी दलों की बैठक भी हुई थी, जिसमें बहुमत से यह निर्णय हुआ कि राष्ट्रगीत के 150 वर्ष पूरे होने पर इसे व्यापक रूप में स्मरण और शोध के जरिए देश के सामने रखा जाए। संसद की यह पहल केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी मानी जा रही है।
वंदे मातरम्: 150 वर्ष की धरोहर
राष्ट्रगीत वंदे मातरम् बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित है। इसे पहली बार 7 नवंबर 1875 को बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित किया गया था और बाद में चटर्जी के प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वंदे मातरम् केवल गीत नहीं, बल्कि संघर्ष का स्वर, क्रांति की प्रेरणा और राष्ट्रवाद का उद्घोष बनकर उभरा। 1905 से लेकर 1947 तक के आंदोलन में इस गीत ने स्वतंत्रता सेनानियों को दिशा, ऊर्जा और एकता की भावना प्रदान की।