पंजाब और हरियाणा के बीच जल संकट का विवाद दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। दोनों राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विभिन्न मतभेदों ने एक नया मोड़ लिया है, और अब इस मुद्दे पर राजनीति और प्रशासन के बीच तकरार साफ नजर आ रही है। इस विवाद में न केवल पंजाब और हरियाणा सरकारें शामिल हैं, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और विभिन्न अन्य राज्य सरकारों के अधिकारी भी इस संकट को हल करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। शुक्रवार को इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्रालय में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
जल संकट की गंभीरता
यह विवाद तब और बढ़ गया जब भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने हरियाणा के लिए 8500 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया। हरियाणा को फिलहाल रोजाना 4000 क्यूसेक पानी मिल रहा था, लेकिन उसने इसके अतिरिक्त पानी की मांग की थी। इस पर पंजाब सरकार ने तीव्र आपत्ति जताई। पंजाब का कहना है कि राज्य पहले से ही जल संकट से जूझ रहा है और उसके पास जलाशय में पानी की एक बूंद भी नहीं बची है।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड की बैठक
30 अप्रैल को एक अहम बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के अध्यक्ष मनोज त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक हुई। इस बैठक में हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली जैसे भाजपा शासित राज्यों ने हरियाणा के पक्ष में मतदान किया, जबकि पंजाब इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ गया। हिमाचल प्रदेश, जो कांग्रेस शासित राज्य है, ने इस मुद्दे पर कोई भी पक्ष नहीं लिया।
पंजाब का दावा है कि भाखड़ा और नांगल दोनों बांधों के जल आवंटन में पिछले वर्ष के मुकाबले कोई अधिक बदलाव नहीं हुआ है। हरियाणा ने पहले ही निर्धारित पानी के हिस्से से 3.110 मिलियन एकड़ फुट पानी वापस ले लिया था, और अब उसने अतिरिक्त पानी की मांग की है। इस मांग को लेकर पंजाब सरकार ने कड़ा विरोध जताया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा कि उनके राज्य के जल संसाधन पहले ही संकट में हैं, और हरियाणा को पानी की अतिरिक्त आपूर्ति देने का सवाल ही नहीं उठता।
जल आवंटन का मामला
पंजाब और हरियाणा के बीच जल आवंटन की व्यवस्था बहुत पुरानी है, और इसमें कई विवाद उठते रहे हैं। हर साल, भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के माध्यम से दोनों राज्यों को उनके जल का हिस्सा आवंटित किया जाता है। वर्तमान वर्ष के लिए, पंजाब को 5.512 मिलियन एकड़ फुट, हरियाणा को 2.987 मिलियन एकड़ फुट और राजस्थान को 3.318 मिलियन एकड़ फुट पानी आवंटित किया गया था।
हरियाणा ने इस आवंटन के खिलाफ पहले ही 3.110 मिलियन एकड़ फुट पानी वापस ले लिया था, और अब उसने 8500 क्यूसेक पानी की मांग की है। हरियाणा का कहना है कि उसे पीने के पानी की बढ़ती आवश्यकता के कारण यह अतिरिक्त पानी चाहिए। पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य पहले से ही जल संकट से जूझ रहा है, और अगर इस समय हरियाणा को अतिरिक्त पानी दिया गया, तो पंजाब के जल संसाधन और भी अधिक दबाव में आ जाएंगे।
पंजाब की स्थिति
पंजाब में जल संकट की स्थिति और भी गंभीर है। पंजाब सरकार का कहना है कि बर्फबारी के मौसम में कम बर्फबारी होने के कारण पोंग और रंजीत सागर बांधों में जल स्तर औसत से कम है, जिससे जल आपूर्ति में कमी आई है। पंजाब सरकार का कहना है कि उन्होंने अपनी नहरों के माध्यम से कृषि क्षेत्र को पानी देने की प्राथमिकता तय की है, ताकि जल का सदुपयोग किया जा सके।
पंजाब सरकार के जल विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल हरियाणा को पीने के पानी की आपूर्ति में कोई समस्या नहीं है। यदि हरियाणा को पीने के पानी की आवश्यकता है, तो पंजाब पानी देने के लिए तैयार है, लेकिन यह तभी संभव है जब पंजाब को पानी की आवश्यकता नहीं हो।
केंद्र सरकार की बैठक
केंद्र सरकार ने इस विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता करने का प्रयास किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय में शुक्रवार को एक बड़ी बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान के अधिकारियों ने अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट की। बैठक में यह विचार किया गया कि कैसे जल संकट के इस विवाद को सुलझाया जा सकता है, ताकि दोनों राज्यों को उनके जल संसाधनों का उचित आवंटन सुनिश्चित किया जा सके।
नांगल बांध पर सुरक्षा बढ़ाई गई
पंजाब सरकार ने इस विवाद के दौरान अपनी सुरक्षा को बढ़ा दिया है, खासकर नांगल बांध पर। इस बांध पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं, ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा या विवाद से बचा जा सके। नांगल बांध पंजाब में स्थित है और इस बांध के जल स्तर पर हरियाणा का भी दावा है।
अदालत में जाने की तैयारी
पंजाब सरकार ने स्पष्ट किया है कि अगर हरियाणा को अतिरिक्त पानी दिया जाता है, तो वह इस मामले को अदालत में ले जाएगी। पंजाब का कहना है कि यह जल संकट उनके राज्य के लिए जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन गया है। पंजाब सरकार का यह भी कहना है कि हरियाणा की अतिरिक्त पानी की मांग को पूरा करने से राज्य की कृषि और जल आपूर्ति की स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
आगे का रास्ता क्या होगा?
इस विवाद का समाधान आसान नहीं है, और दोनों राज्यों के बीच राजनीतिक और प्रशासनिक तकरार जारी रह सकती है। यह विवाद केवल पानी के बंटवारे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे दोनों राज्यों के बीच एक गहरी राजनीतिक खाई भी पैदा हो सकती है। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारें इस विवाद को कैसे सुलझाने का प्रयास करती हैं।
जल संकट न केवल पंजाब और हरियाणा बल्कि पूरे देश के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। अगर इस मामले का समाधान शीघ्र नहीं निकला, तो यह न केवल दोनों राज्यों के बीच संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की जल नीति पर भी सवाल उठाएगा।