पाकिस्तान के अशांत प्रांत बलूचिस्तान में एक बार फिर सरकार और सरकारी कर्मचारियों के बीच टकराव खुलकर सामने आ गया है। सोमवार को बलूचिस्तान के सरकारी कर्मचारियों ने पेन-डाउन स्ट्राइक का ऐलान करते हुए कामकाज पूरी तरह ठप करने का फैसला लिया। कर्मचारियों का आरोप है कि लंबे समय से उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है और सरकार की बेपरवाही व नाकाबिलियत के चलते अब आंदोलन दूसरे चरण में पहुंच गया है।
पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी कर्मचारियों के बड़े संगठन बलूचिस्तान ग्रैंड अलायंस के महासचिव अली असगर बंगुलजई ने बयान जारी कर कहा कि सोमवार को सभी संबद्ध संगठन पेन-डाउन स्ट्राइक पर हैं। इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि 30 और 31 दिसंबर को पूरे प्रांत के सभी सरकारी संस्थानों में पूर्ण लॉकडाउन रहेगा। इस दौरान कर्मचारी किसी भी तरह का प्रशासनिक काम नहीं करेंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आम जनता को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य विभाग में इमरजेंसी सेवाएं चालू रहेंगी।
सरकारी कर्मचारियों का यह आंदोलन अचानक शुरू नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे लंबे समय से चल रहा असंतोष है। कर्मचारी वेतन, सेवा शर्तों, पदोन्नति और संस्थागत फैसलों में पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार सिर्फ आश्वासन देती है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।
इस विरोध की पृष्ठभूमि अक्टूबर महीने में हुए प्रदर्शनों से भी जुड़ी हुई है। अक्टूबर में कलात जिले में बलूचिस्तान सरकार के एक अहम फैसले को लेकर जबरदस्त विरोध देखने को मिला था। उस समय कर्मचारियों और खासतौर पर लेवी फोर्स के सदस्यों ने लेवी फोर्स को पुलिस डिपार्टमेंट में शामिल करने के फैसले का कड़ा विरोध किया था। प्रांतीय सरकार द्वारा मर्जर से जुड़ा नोटिफिकेशन जारी होते ही पूरे बलूचिस्तान में लेवी कर्मियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिए थे।
द बलूचिस्तान पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, कलात में लेवी फोर्स के सदस्यों ने एक बड़ी रैली निकाली थी। यह रैली लेवीज हेडक्वार्टर से शुरू होकर शाही बाजार, हॉस्पिटल रोड, हरबोई रोड, दरबार रोड समेत कई प्रमुख इलाकों से गुजरते हुए वापस हेडक्वार्टर पहुंची। इस दौरान सड़कों पर नारेबाजी हुई और सरकार के फैसले के खिलाफ गुस्सा साफ नजर आया।
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए लेवीज अधिकारियों और कर्मचारियों ने कहा कि लेवी फोर्स का 142 साल पुराना इतिहास है और इसने बलूचिस्तान में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका कहना था कि लेवी फोर्स के कई जवानों ने ड्यूटी निभाते हुए अपनी जान तक कुर्बान की है, ऐसे में बिना व्यापक परामर्श के इस बल को पुलिस में मर्ज करना उनके बलिदानों का अपमान है।
लेवी कर्मियों ने यह भी याद दिलाया कि इससे पहले भी इस तरह के मर्जर की कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन वे नाकाम रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने एकतरफा फैसला वापस नहीं लिया, तो विरोध और तेज होगा। प्रदर्शनकारियों ने बलूचिस्तान सरकार से हाई कोर्ट द्वारा लगाए गए स्टे ऑर्डर को पूरी तरह लागू करने और हाल ही में जारी नोटिफिकेशन को तत्काल वापस लेने की मांग की थी।
16 अक्टूबर को जारी सरकारी अधिसूचना में कहा गया था कि प्रांतीय कैबिनेट की मंजूरी के बाद प्रांतीय और संघीय लेवी फोर्स को सात में से छह प्रशासनिक डिवीजनों में पुलिस के साथ मर्ज कर दिया गया है और इन क्षेत्रों को ए-एरिया घोषित किया गया है। जिन छह डिवीजनों में यह फैसला लागू हुआ है, उनमें क्वेटा, रखशान, कलात, मकरान, झोब और नसीराबाद शामिल हैं।
हालांकि, सिबी डिवीजन को इस मर्जर से अलग रखा गया है। सिबी डिवीजन में सिबी, कोहलू, डेरा बुगती, हरनाई और जियारत जिले शामिल हैं, जहां लेवी फोर्स को फिलहाल बलूचिस्तान पुलिस में शामिल नहीं किया गया है। कुल मिलाकर, सरकारी कर्मचारियों की पेन-डाउन स्ट्राइक और लेवी फोर्स मर्जर का मुद्दा बलूचिस्तान में राजनीतिक और प्रशासनिक अस्थिरता को और गहरा करता नजर आ रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि सरकार बातचीत का रास्ता अपनाती है या फिर यह आंदोलन और व्यापक रूप लेता है।