थामा फिल्म रिव्यु - डर, जादू और दिल का जबरदस्त मेल, मैडॉक यूनिवर्स का अगला मास्टरस्ट्रोक!
जिन्हें मैडॉक यूनिवर्स पसंद है, उनके लिए ये फिल्म एक ट्रीट है। और जो नए दर्शक हैं, उनके लिए यह एक परफेक्ट शुरुआत।
निर्देशक - आदित्य सरपोतदार
कलाकार - आयुष्मान खुराना , रश्मिका मंदाना , परेश रावल और नवाजुद्दीन सिद्दीकी
लेखक - निरेन भट्ट , अरुण फुलारा और सुरेश मैथ्यू
निर्माता - दिनेश विजन और अमर कौशिक
अवधि - 149 मिनट
स्त्री ने डराया, भेड़िया ने चौंकाया — और अब थामा आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहाँ डर सिर्फ डर नहीं, बल्कि एक गहरी, खूबसूरतकहानी का हिस्सा है। मैड्डॉक फिल्म्स के इस हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स में थामा वो नया अध्याय है जो न सिर्फ रोमांचक है, बल्कि बेहद भावनात्मक औरसिनेमैटिकली शानदार भी। कहानी की जड़ें हैं लोककथा में, लेकिन उड़ान है पूरी फैंटेसी की।
दिल्ली का पत्रकार आलोक (आयुष्मान खुराना), जब एक ट्रेकिंग ट्रिप पर निकलता है, तो उसे नहीं पता कि वह एक रहस्यमयी वैम्पायर-जगत की ओरबढ़ रहा है। रास्ते में मिलती है तड़ाका (रश्मिका मंधाना), जो खुद कई राज़ छुपाए हुए है। दोनों मिलकर एक ऐसे जंगल में प्रवेश करते हैं, जहाँ अतीतआज भी साँस ले रहा है और जहां हर पेड़, हर परछाईं कुछ कह रही है।
आदित्य सरपोतदार का निर्देशन इस बार और भी परिपक्व, परिकल्पनात्मक और सिनेमैटिक रूप से समृद्ध है। हर फ्रेम पेंटिंग जैसा लगता है — खासकरजंगल वाले सीक्वेंस, जो रहस्य और जादू को जीवन में उतार देते हैं।
आयुष्मान खुराना एक बार फिर अपने अभिनय से दिल जीत लेते हैं। आलोक के डर और उलझनों को वह इतने सच्चेपन से निभाते हैं कि दर्शक खुदको उनकी जगह महसूस करने लगते हैं। रश्मिका मंधाना अपने किरदार में एक सुंदर संतुलन लेकर आती हैं — न ज़्यादा ड्रामा, न ज़्यादा ग्लैमर, बसएक दमदार इमोशनल प्रेजेंस।
और फिर आते हैं मास्टर परफ़ॉर्मर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, जिनकी एंट्री ही फिल्म की टोन बदल देती है। उनका किरदार रहस्यमय है और शायद आगे केचैप्टर्स में उसका और बड़ा रोल देखने को मिलेगा। परेश रावल हमेशा की तरह कमाल की कॉमिक टाइमिंग और तीखे संवादों के साथ दिल जीतते हैं।
सत्यराज की वापसी ‘हैंड ऑफ गॉड’ एल्विस के रूप में और वरुण धवन का जबरदस्त कैमियो बताता है कि थामा सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एकबड़ा मैडॉक मल्टीवर्स सेटअप है। और हाँ, नोरा फतेही की झलक ना सिर्फ ग्लैमर का तड़का है, बल्कि गहराई जोड़ती है — एक बड़ा ट्विस्ट होसकता है आगे! म्यूजिक इस बार सिर्फ ‘आइटम नंबर’ नहीं है — हर गाना कहानी का हिस्सा है, एक नया इमोशन खोलता है। बैकग्राउंड स्कोर कुछ दृश्यों में आपकी साँसें थमा देता है।
फिल्म में स्त्री और भेड़िया के कई कैमिया छुपे हुए हैं। सबसे चौंकाने वाला है सर-कटा की वापसी, जो आने वाली तबाही का साफ इशारा देता है। यहफिल्म सिर्फ थामा की कहानी नहीं कहती — यह पूरे मैडॉक यूनिवर्स की आने वाली जंग की भूमिका तैयार करती है।
थामा वो सिनेमाई अनुभव है जो डराता नहीं, बाँध लेता है। ये लोककथा, लव स्टोरी और लोर का ऐसा मेल है जो भारतीय हॉरर-फैंटेसी को एक नईऊँचाई पर ले जाता है। खत्म होते-होते आपको न सिर्फ और जानने की चाह होगी, बल्कि एक बार फिर इस दुनिया में लौटने की भी। जिन्हें मैडॉकयूनिवर्स पसंद है, उनके लिए ये फिल्म एक ट्रीट है। और जो नए दर्शक हैं, उनके लिए यह एक परफेक्ट शुरुआत।